वाजिद हुसैन सिद्दीक़ी की कहानी सुबह के ठीक नौ बज रहे थे। महेश अग्रवाल दफ्तर जाने की तैयारी में था। टाई का फंदा गर्दन में डाल ही रहा था कि उसकी पत्नी दीपा कमरे में आई। धीमे लेकिन गंभीर स्वर में बोली -"तुम्हारा फोन है।" महेश के माथे पर हल्की त्योरियां चढ़ गई। ''इस वक्त कौन फोन कर सकता है?" दफ्तर जाने का उसका साढ़े नौ का तयशुदा नियम था। घर से निकलने से पहले आए फोन उसे हहमेशा आसहज कर देते थे।दीपा बोली - "वह कह रही है कि तुम्हारे साथ यूनिवर्सिटी में पढ़ी है।"महेश चौका। "यूनिवर्सिटी? नाम बताया?"कहती है -