सपनों का मंडपलेखक: विजय शर्मा एरीशब्द संख्या: लगभग १५००भाग १ – सपनों की बुनियादअजय की नींद टूटी तो उसने देखा कि उसका बिस्तर चारों तरफ से चमकती हुई रोशनी से घिरा हुआ है। वह उठा, खिड़की खोली। बाहर का दृश्य वैसा ही था – छोटा-सा गाँव, कच्ची सड़कें, दूर पहाड़ी पर बनी पुरानी हवेली। लेकिन आज हवा में कुछ अलग था। एक मीठी खुशबू, जैसे चमेली के फूलों की।अजय ने घड़ी देखी – सुबह के चार बज रहे थे। वह फिर लेट गया, पर नींद नहीं आई। उसका मन बार-बार उसी सपने की ओर खिंचा चला जा रहा था जो