आश्रम में प्रातःकालीन ध्यान-धारणा के बाद जब सूर्य की पहली किरणें जिनालय के श्वेत संगमरमर पर पड़तीं, तब पंच-परमेष्ठी की पूजा आरंभ होती। घंटियों की मधुर ध्वनि, दीपों जा प्रज्ज्वलन, फूलों की सुगंध, और मंत्रों का सामूहिक उच्चारण वातावरण को पवित्र बना देता।राघवी पूजा के बाद अन्य साध्वियों के साथ दिनचर्या में लग जाती। दोपहर में थोड़ा विश्राम, फिर ग्रंथ-पठन, सेवा-कार्य, और शाम को प्रवचन-श्रवण। इस तरह दिन भर व्यस्तता बनी रहती और खासा थकान के कारण रात में वह गहरी नींद सो जाती। नींद इतनी गहरी कि बीच-बीच में उठकर जल पीने की भी इच्छा नहीं होती।पर महीने के