एक रात :एक किशोर की खामोश चीख

# वो रात: एक किशोर की खामोश चीख**एक साहित्यिक संस्मरण**## प्रथम अध्याय: रात्रि का कोलाहलरात के साढ़े तीन बजे थे।गाँव की काली मिट्टी से उठती ओस की ठंडक धीरे-धीरे हवा में घुल रही थी। कुत्तों के भौंकने की आवाजें मीलों दूर के अँधेरे को हल्का-हल्का चीरती, एक अनजाने तनाव की परत छोड़ रही थीं। चारों ओर सन्नाटा था, मगर यह सन्नाटा शांति का नहीं, बल्कि किसी आने वाले तूफ़ान की पूर्व सूचना जैसा था।यह वही रात थी जब समाज के दिए घाव किसी चाकू से ज़्यादा गहरे लगते हैं। जब अपनों की ज़बान पर चढ़े शब्द किसी जहर से ज़्यादा