उजाले की ओर –संस्मरण

उजाले की ओर---संस्मरण ================= स्नेहिल नमस्कार साथियो        मानव-जीवन जितना आसान है, उतना ही कभी गोल-गोल घुमाकर ऐसे जकड़ने लगता है कि हमें लगता है कि कहाँ फँस गए! जी का जंजाल सा लगने लगता है।     होता यह है कि हम स्वयं ही अपना मन डाँवाडोल करने लगते हैं। जीवन है तो सीधी सड़क पर तो चलेगा नहीं, भई इसका भी अपना कोई हिसाब किताब होगा।        मानू बहुत समझदार और किसी भी स्थिति में अपने आपको संभाल लेने वाली है किंतु हो जाता है कभी, मनुष्य ही तो हैं, कभी छोटी सी बात