जहरीला घुंगरू - भाग 2

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जहरीला घुंगरू भाग 2लेखक- राज फुलवरेअध्याय–7अतीत की धधकती राख**महल के लंबे गलियारों में सन्नाटा पसरा था।राजा वज्रप्राण अपने कक्ष से बाहर निकलकर बरामदे की ओर चल पड़े।रात गहरी थी, बादल आकाश में बिजली की पतली रेखाओं की तरह चमक रहे थे।वज्रप्राण ने खिड़की से ऊपर देखा—“क्यों… क्यों यह सब यहीं आकर टूट जाता है?”उनके भीतर उबलता हुआ गुस्सा था—पर वह गुस्सा किसी दासी पर नहीं, किसी दुश्मन पर नहीं…वह गुस्सा रानी रुद्रिका पर था।मगर विडंबना यह कि वह उस गुस्से को व्यक्त भी नहीं कर पा रहे थे।क्योंकि रुद्रिका केवल उनकी रानी नहीं—उनके बचपन की साथी, राजकुल की प्रतिष्ठा, उनका