“मैं यह किताब क्यों लिख रही हूँ…”आज के सोशल मीडिया के दौर में, जहाँ एक रील, एक पोस्ट, या एक ट्रेंड पूरे समाज की सोच बदल देता है—मैंने एक बात बड़ी गहराई से महसूस की है।पत्नी और प्रेमिका की तुलना अब मनोरंजन का साधन बन चुकी है।किसी को ऊँचा दिखाने के लिए किसी को नीचा दिखाना कितना आसान हो गया है।अक्सर प्रेमिका को निस्वार्थ प्रेम का प्रतीक बताया जाता है,और पत्नी को “समझौते से बंधी” या “स्वार्थी” कहकर जज कर दिया जाता है।लेकिन मैं जानती हूँ—यह सच नहीं है।और शायद इसी सच को दुनिया तक पहुँचाने के लिए हीमैं यह