मां की आख़िरी चिट्ठी : एक अधूरा सपना

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‎‍ एक साधारण औरत, असाधारण सपने‎गांव की गलियों में हर सुबह मंदिर की घंटी और परिंदों की चहचहाहट ️ गूंजती थी।‎उसी गांव के एक छोटे से कच्चे घर ️ में रहती थी आशा, एक साधारण सी औरत लेकिन सपनों में बेहद बड़ी ।‎‎पति का देहांत तब हो गया था जब उसका बेटा निरंजन मुश्किल से पांच साल का था ।‎उस दिन से आशा ने ठान लिया –‎“मैं मां भी बनूंगी और पिता भी। चाहे कितनी भी मुश्किलें आएं, मेरा बेटा पढ़-लिखकर बड़ा आदमी बनेगा।” ️‎‎आशा दिन-रात मेहनत करती ।‎खेतों में काम करती , घर-घर जाकर सिलाई करती , और