भारत—एक ऐसा विरोधाभासी भूगोल, जहाँ ज्ञान की गंगा भी बहती है और संकीर्णता का दलदल भी पसरा है। यह उन ‘बातों के महापुरुषों’ का देश है, जहाँ हर चौथा व्यक्ति सड़क किनारे खड़ा होकर ऐसा प्रवचन दे सकता है कि उसकी बातों से धर्म का सच्चा अर्थ निकल आए, सरकारें हिल जाएँ और समाज एकाएक सुधर जाए। हर गली-नुक्कड़ पर आपको एक चलता-फिरता नैतिकता का विश्वविद्यालय मिल जाएगा, जहाँ बिना किसी डिग्री के, हर व्यक्ति सच्चाई, ईमानदारी और प्रगतिशीलता पर पीएचडी किए बैठा है। पर यह सब केवल शब्दों के स्तर पर होता है।ज्योंही बात व्यवहार की आती है, हमारा