कहानी - हँसते जख्म******* आज पहली बार धीर को खुशी के साथ पूरी तरह आत्मसंतुष्टि हो रही थी। हो भी क्यों न? आखिर उसने भी तो अपने माता-पिता -पिता को संघर्ष करते, अभावों में दिन काटते देखा है। लेकिन पिता की जिद ने दोनों बच्चों की पढ़ाई रुकने नहीं दिया। धीर की पढ़ाई और बिटिया शील के सुखद भविष्य की उम्मीद को उन्होंने कभी मरने नहीं दिया। सामर्थ्य से अधिक काम करते। जबकि माँ दूसरों के घरों में चौका बर्तन करके पति का बोझ हल्का करने की कोशिश करती रहती। पर ईश्वर को यह भी