कुण्डलिनी विज्ञान — भाग 5 अध्याय 14वेदांत 2.0 — स्त्री-पुरुष का मौलिक धर्म पुरूष = यात्रा स्त्री = घर (केंद्र) धर्म, कर्मकांड, साधना, उपाय —ये सब पुरुष के लिए हैं।क्योंकि पुरुष जर्नी है —उसे मूलाधार से हृदय तकचढ़ते हुए सीखना पड़ता है — 1️⃣ मूलाधार — जीवन2️⃣ स्वाधिष्ठान — वासना3️⃣ मणिपुर — शक्ति4️⃣ अनाहत — प्रेम पुरुष सीखकर पहुँचता है।प्रेम, करुणा, ममता —पुरुष में उगाने पड़ते हैं। इसलिए पुरुष का धर्म —विकास हैऊपर उठना हैअहंकार पिघलाना हैहृदय तक पहुँच जाना है उससे पहले उसका प्रेम —अभिनय है।शब्दों की नकल है।बुद्धि का ड्रामा है। इसी बुद्धिगत अभिनय कोदुनिया धर्म समझ बैठी है।यही धार्मिक व्यापार है। --- स्त्री = पूर्ण, जन्म से उसकी