ढाका, 1965 – उमस, बारिश और धीमी जलती मोहब्बतभाग 1: उसका दीदार… जैसे हवा भी ठहर जाएकमलगंज की गली में पहली बार जब रुबैया ने हसन को देखा,बारिश हल्की थी—पर उसके दिल की धड़कनें तेज़।उसने हसन को पेड़ के नीचे बच्चों को पढ़ाते देखा।कुरता भीगा हुआ, बाल माथे पर चिपके हुए,और उसके होठों पर वो नरम, धीमी मुस्कान…रुबैया की उंगलियाँ अनजाने में दुपट्टे को कसने लगीं।उसे समझ नहीं आया—बारिश ज़्यादा गर्म थी… या वो।हर दिन वह दूर खड़ी रहती,पर उसकी आँखें एक पल के लिए भी हसन से हटती नहीं थीं।जब हवा तेज़ चलती, उसके दुपट्टे का सिरा उड़कर उसके