पलकों पर अधूरे सपने— एक प्रेम और संघर्ष की कहानी

(183)
  • 1.4k
  • 486

राख से उठती चिंगारीशहर की सुबह हमेशा की तरह शोर से भरी थी,पर उस शोर में भी नैना की ज़िंदगी सन्नाटे में डूबी हुई थी।दिल्ली के पुराने मोहल्ले की एक संकरी गली में वो रोज़ अपने छोटे से कमरे की खिड़की से आसमान को देखती,जहाँ उसके सारे सपने धुएँ में खो जाते थे।नैना एक साधारण लड़की थी — न ज़्यादा हसीन, न बहुत अमीर।पर आँखों में हज़ारों सपने,और दिल में एक उम्मीद कि शायद एक दिन उसके संघर्ष का सूरज भी उगेगा।उसके पिता एक छोटे दर्जी थे, और माँ की मौत तब हो गई थी जब नैना बस बारह साल