तृप्ति देसाई - रंजन कुमार देसाई

                  तृप्ति देसाई - लघु कथा       " बचाओ.. बचाओ!! "      फ्लेट के भीतर से किसी स्त्री की चीख सुनाई दी. सुनकर मेरे अंतर मन में खलबली सी मच गई.      आवाज परिचित होने का आभास हुआ.      डोर बेल तक विस्तारीत हाथ को मानो बिजली का झटका लग गया.      पलभर में अनगिनत ख्यालो ने मेरे दिमाग़ को घिर लिया.      क़ोई स्त्री के सर पर खतरे की तलवार लटक रही थी.      भय सूचक साइरन ने मुझे वास्तविकता का एहसास दिला दिया.      भीतर पहुंचना ऊस समय की मांग थी.      मैंने बेल बजाने की कोशिश की लेकिन वह बंद थी.      गुस्से में मैंने बंद