वेदान्त 2.0 - भाग 7

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  अध्याय 10 :Vedānta 2.0 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲   स्त्री‑तत्व और धर्म: एक दार्शनिक व्याख्या धर्म का मूल भाव सदैव से ही जीवन के उस गहरे अंश में निहित रहा है, जहाँ मनुष्य अपने अस्तित्व की सच्चाई और आत्मा की पुकार को पहचानता है। यह भावना यदि गहरे से देखा जाए, तो धर्म केवल बाहरी नियमों या आडंबर का नाम नहीं, बल्कि उस आंतरिक शक्ति का प्रतीक है जो जीवन के सभी पहलुओं में अनंत ऊर्जा का संचार करती है।   **स्त्री‑तत्व का दार्शनिक परिदृश्य**   इस संदर्भ में, स्त्री‑तत्व का विचार अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाता है। यह केवल जैविक या सामाजिक भूमिका का नाम नहीं है, बल्कि