मृदुला

मृदुला के घर से फिर वही आवाजें उठ रही थीं..चीखें, रोने की, बर्तनों के गिरने की, बच्चों के सिसकने की।मोहनलाल के घर तक साफ सुनाई देती थीं ये चीखें।पर अब यह सब उनके लिए नया नहीं था।हर शाम यही होता था।जैसे इस मोहल्ले की हवा में भी अब उस दर्द की गंध घुल चुकी थी।विनय - मृदुला का पति -शराब पीकर लौटता, और फिर वही सिलसिला शुरू।कभी मृदुला पर हाथ उठाता, कभी बच्चों पर।पड़ोसी दीवारों के पीछे चुपचाप सुनते रहते -“ये तो रोज़ की बात है…”“उनका मामला है…”“बीच में पड़ना ठीक नहीं…”धीरे-धीरे हिंसा एक दैनिक अनुष्ठान बन गई थी -और