।चंदन शर्त लगाने का भूखा नहीं था, शर्त जीतकर लोगों की आँखों में चमक देखना उसे अच्छा लगता था।हो सकता है उसने कभी समझा ही नहीं कि लोग उसके साथ खेलते नहीं—उसे परखते थे।और वह हर बार खुद को साबित करने निकल जाता।इसलिए लोग उसे मज़ाक में “शर्तिया चंदन” कह देते थे,और वह इस नाम को ऐसे पहनता था जैसे कोई पदक।दोपहर ढल रही थी।पेड़ों के पीछे सूरज धीमे-धीमे फिसल रहा था।आनंद ने हँसते हुए चंदन से कहा—“तू तो बस बातें करता है… अगर हिम्मत है तो बड़ी हवेली के बगीचे से दस आम तोड़कर ले आ।तू करेगा नहीं… क्योंकि