मानवता की कोख

मालती गांव में रहने वाली एक सीधी शादी महिला थी, उसका घर, गाँव के उस सिरे पर था जहाँ अभी भी कच्चे रास्ते हैं और बिजली सिर्फ शोभा के लिए आती है। उसका पति मजदूरी के लिए शहर गया था उसकी एक बेटी थी जिसका नाम था स्नेहा उसकी उम्र लगभग 7 वर्ष की थी, मालती उसे बहुत लाड प्यार से रखती मानो उसकी जान उसी में बस्ती हो। एक दिन स्नेहा नीम के पेड़ के नीचे खेल रही थी, जब उसकी चीख सुनाई दी “माँ... ओ माँ... कुछ काट लियो रे...!” मालती दौड़ती आई। देखा, पैर पर दो नीले