अध्याय 1 — “राजनीति की आंधी”सुलतानगढ़ के आसमान में धूल का तूफ़ान उठा हुआ था।लोगों के चेहरों पर डर था, पर मकसूद राजा की आँखों में सिर्फ़ युद्ध की चमक थी।वो तलवार के साथ पैदा हुआ था, और उसी के साथ जीना जानता था।पर आज की लड़ाई मैदान में नहीं — दरबार में लड़ी जानी थी।दरबार में जब मंत्री ने कहा —> “महाराज, अगर देवगढ़ से संधि नहीं की गई, तो सुलतानगढ़ पर हमला तय है।”मकसूद राजा उठे, उनकी भारी आवाज़ गूँजी —2> “जो ताज सर झुकाकर बचे, वो ताज नहीं, बेड़ियाँ हैं।”सारा दरबार खामोश हो गया।फिर अचानक एक दूत