अतुल्या

                    “सपाट सड़कों पर गाड़ी बहुत दौड़ा ली। आज ऊबड़- खाबड़ रास्ते नापते हैं। शहर के बाहर निकलेंगे,” सन उन्नीस सौ सत्तर के उन दिनों मैं एंबेसडर पर कार चलाना सीख रहा था।                   “नहीं,भैया जी,” पंद्रह साल पुराना हमारा ड्राइवर मेरे उत्साह में सम्मिलित नहीं हुआ, “शहर के बाहर कोई दांए- बांए नहीं देखता। हर कोई अपने को सड़क का मालिक मानता है…..”                   “इत्मीनान रखो,” मैं हंसा, “अपनी स्पीडोमीटर की सुई मैं वहां