बैड फ़ेथ

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                   घर मैं शुक्रवार की सुबह आ पहुंचता हूं।                    मेरे गेट खोलते ही तीनों बाहर आ लपकते हैं : बाबूजी,मां और बहन।                    तीनों जानते थे आज ही के दिन मेरी इंजीनियरिंग के अंतिम सत्र की अंतिम परीक्षा भी रही।                    “पर्चा छोड़ दिया?” बाबूजी के चेहरे पर झल्लाहट आन पसरी है।                   “व्यर्थ ही,” बहन सिर हिलाती है,