वेदान्त 2.0 - भाग 1

अध्याय १.पूजा–पाठ : धर्म की प्रारंभिक अवस्था  Vedānta 2.0 © — 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲1. प्रारंभिक स्वरूपपरंपरागत मानसिकता में पूजा–पाठ धर्म का आरंभिक और सबसे प्रचलित रूप है।यह वह अवस्था है जहाँ व्यक्ति बाह्य देवताओं या प्रतीकों की आराधना करता है,मंत्रोच्चार और विधि–विधान को ही धर्म समझ लेता है।यह बाल्यकाल की उस सीढ़ी जैसी है,जहाँ शिशु अपने अनुभवों को बाह्य वस्तुओं में खोजता है,पर आत्मिक गहराई का द्वार अभी नहीं खुला होता।2. बाह्य पूजा–पाठ की सीमाएँजब कोई व्यक्ति पूजा–पाठ को ही धर्म का पूर्ण स्वरूप मान लेता है,और जीवनभर उसी एक सीढ़ी पर ठहरा रहता है,तब उसकी आध्यात्मिक यात्रा रुक जाती है।पूजनीय