एक गलती

अरजुन की सुबहें हमेशा एक ही रूटीन पर चलती थीं — पाँच बजे की हिम्मत, चाय की गंध और बेटी नैना की छोटी सी हँसी। नैना आठ साल की थी; उसके बाल हमेशा बोले-सीधी चोटी में बँधे रहते और हाथ में कोई किताब या पेंसिल रहती। अरजुन का दिन उसी दुपट्टे की कती हुई अबरलाइन्स की तरह सिमटा रहता — घर, फैक्ट्री, घर। फिर भी घर वापस लौटना उसके लिए किसी मंदिर की तरह था।उस मंगलवार की सुबह कुछ अलग नहीं थी। रात के बचे हुए पराठों की खुशबू थी रसोई में — रविवार को बनी माँ सावित्री की कोशिशें