शनिवार की शपथ

अमन हर हफ्ते अपनी जेब में एक छोटी-सी लाल डायरी रखता था, जिसमें पूरे सप्ताह उसे मिले अन्याय की सूचियाँ लिखी रहतीं—किसी का रिश्वत मांगना, किसी का कमजोर पर हाथ उठाना, किसी का सच को झूठ में दबा देना। वह हर नाम के आगे बस एक तारीख नोट करता—आगामी शनिवार। यह उसकी माँ की आख़िरी सीख का निभाया हुआ समझौता था: “गुस्सा हर दिन मत जी, उसे एक दिन का व्रत बना—और उस दिन सच के साथ खड़ा रहना।” उस शनिवार सुबह, शहर धुंध में लिपटा था। अमन ने डायरी खोली—पहला नाम: महाजन, जो झुग्गी के बच्चों की किताबों की