अन्तर्निहित - 16

[16]“मैं बताती हूँ। उस प्रदर्शनी में मैंने अपना कोई शिल्प नहीं रखा था। किन्तु वहाँ मुझे सब के सम्मुख बाँसुरी बजाने का सौभाग्य मिला था। मेरी बाँसुरी सुनकर वत्सर मेरे पास आया था और कहने लगा .. “क्या तुम मुझे बाँसुरी बजाना सीखा सकती हो?”“अवश्य। किन्तु उसकी कीमत चुकानी पड़ेगी। चुका पाओगे?” येला ने पहाड़ की तरफ देखते हुए कहा। “यदि मेरे बस में होगी तो चुका दूंगा।”“और नहीं हुई तो?”“तो बाँसुरी को भूल जाऊंगा।”“और बाँसुरीवाली को?”“उसे नहीं भूलूँगा। कभी नहीं।”“किंमत तो जान लो।”“कहो।” वत्सर ने नि:श्वास के साथ कहा। “मुझे तुम्हारा वह शिल्प देना पड़ेगा। स्वीकार्य है?”“वह शिल्प?” वत्सर विचार में पड