अध्याय 3 — मंदिर और मूर्ति का रहस्य — 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲मूर्ति कभी ईश्वर नहीं थी।वह केवल मानव-मन का दर्पण थी —जिसमें उसने अपनी ही छवि ईश्वर के रूप में देखी।मनुष्य ने जब पहली बार किसी स्त्री को देखा,तो भीतर एक कंपन, एक काम घटित हुआ।वह शक्ति, आकर्षण और विस्मय — सब एक साथ।मनुष्य उस अनुभव को समझ नहीं पाया,पर उसने जाना कि यह साधारण नहीं है।वह जो भीतर उठा, वही “ऊर्जा” थी —जिसे बाद में उसने “देवी” कहा,और उसी के रूप पर पहली मूर्ति गढ़ी।इस तरह मूर्ति का जन्म किसी धर्मादेश से नहीं,बल्कि ऊर्जा के विस्मय से हुआ।① पहला कारण —