एपिसोड 43 — “अधूरी आत्माएँ”(सीरीज़: अधूरी किताब)---1. किताब का फिर खुलनारात फिर से नीली थी।दरभंगा की हवेली, जो कुछ घंटों पहले तक शांत थी,अब जैसे साँस ले रही थी।टेबल पर रखी “रूह की कलम — Written by Neha Sharma”अपने आप खुली।पन्ने अपने आप पलटने लगे,और हवा में एक जानी-पहचानी आवाज़ गूँजी —> “कहानी कभी खत्म नहीं होती…बस रूप बदलती है।”पन्ने के बीचों-बीच एक स्याही की बूंद टपकी —जो धीरे-धीरे आकार लेने लगी।वो बूंद अब एक चेहरा बन चुकी थी।> “मैं तन्वी हूँ… फिर लौट आई हूँ।”नेहा की लिखी किताब से तन्वी की रूह अब जीवित थी।वो मुस्कुरा रही थी