साहित्यिक साझा मानसिक मी टू `बतर्ज़ सबरीमाला ब्ला ---ब्ला --- - 1

[ नीलम कुलश्रेष्ठ ] एपीसोड -1 [ प्रभा खेतान जी ने उनत्तीस तीस वर्ष पहले `हंस `में लिखा था - महिलायें अपनी स्थिति का विरोध अपने ज़ख्मों को उघाड़कर करतीं हैं। अहिन्दीभाषी प्रदेश में महिला साहित्यिक मंच पर सर्वेनुमा आलेख ] चौराहे के एक तरफ़ बने बाग़ के सामने `आवारा टी` के समय सब पेड़ के नीचे दो बेंचों पर आपने सामने बैठी ज़ोर से हंस दीं थीं । एक पुरानी मेज़ पर स्टोव के ऊपर से अल्युमिनियम की केतली उतारता चाय बनाता अधपकी दाढ़ी वाला हरे सफ़ेद रंग की लुंगी पहने वह अधेड़ काला चायवाला अपनी मिचमिची आँखों से