अध्याय 7भारतीय संस्कृति की वैश्विक प्रासंगिकताभारत की संस्कृति केवल भारत की नहीं है, वह सम्पूर्ण मानवता की धरोहर है। यह वह संस्कृति है जिसने सदा कहा—“वसुधैव कुटुम्बकम्”—सारी धरती एक परिवार है। यह वाक्य केवल आदर्श वाक्य नहीं, बल्कि भारत का जीवन-दर्शन है। जब पश्चिम यह कहता रहा कि “मनुष्य अकेला है और संघर्ष ही उसका मार्ग है”, तब भारत यह सिखाता रहा कि “सभी जीवात्माएँ एक ही ब्रह्म के अंश हैं और सहयोग ही जीवन की आत्मा है।” यही दृष्टिकोण आज की दुनिया के लिए उतना ही प्रासंगिक है जितना सहस्त्रों वर्ष पूर्व था।आज का विश्व युद्ध, हिंसा, आतंकवाद और