लाश जो कभी नहीं मिली

अध्याय 1 – हवेली का रहस्यरात के सन्नाटे में एक पुराना लोहे का गेट चर्र-चर्र की आवाज़ करता हुआ खुला।ठंडी हवा में धूल उड़ रही थी, और बीचों-बीच खड़ी थी — मेहरा हवेली।सौ साल पुरानी, जर्जर दीवारों वाली, लेकिन कुछ ऐसा था उसमें जो अब भी ज़िंदा था… जैसे कोई देख रहा हो, हर कदम को, हर सांस को।इंस्पेक्टर राघव सिंह ने टॉर्च ऑन की।“यह वही हवेली है जहाँ से कॉल आया था, है ना?” उसने सब-इंस्पेक्टर से पूछा।“जी सर, लेकिन वहाँ कोई नहीं मिला। दरवाज़ा पहले से खुला था।”राघव झुका और ज़मीन पर चमकती किसी चीज़ को उठाया —वो