कालसर्प का श्राप

शीर्षक: “कालसर्प का श्राप”️ लेखक – विजय शर्मा एरी---रात के ग्यारह बजे थे। पहाड़ों के बीच बसा छोटा-सा गाँव देवलपुर काली चादर में लिपटा सो रहा था। लेकिन उस नींद भरी खामोशी के बीच, एक पुराना मंदिर जगमगा उठा—जैसे किसी ने भीतर कोई दीपक जला दिया हो।मंदिर के पास से गुजरता चरवाहा रघु ठिठक गया।“अरे! ये तो नागेश्वर मंदिर है… यहाँ तो बरसों से कोई नहीं आता!”वो डरते-डरते पास पहुँचा, लेकिन अचानक ज़मीन में हल्का-सा कंपन हुआ। रघु के पैर के नीचे की मिट्टी काँपी और मंदिर से एक अजीब-सी नीली रोशनी निकली।रघु ने भागने की कोशिश की, मगर तभी