छोटे से गाँव की लड़की थी नेहा।सुबह सूरज निकलने से पहले ही उसकी दिनचर्या शुरू हो जाती थी — माँ के साथ पानी भरना, फिर चूल्हे पर रोटी सेंकना, और उसके बाद फटे पुराने बैग में किताबें रखकर स्कूल की ओर चल देना।रास्ते में कई बार लोग हँसते हुए कहते, “अरे नेहा, पढ़-लिखकर क्या करेगी? आखिर में तो शादी ही करनी है।”नेहा बस हल्की मुस्कान देती और मन ही मन सोचती, “अगर सपने देखने की हिम्मत है, तो पूरा करने की भी होगी।”उसका सपना था शिक्षिका बनना — ताकि गाँव की हर बेटी पढ़ सके, जो आज भी किताबों से