९९ का धर्म — १ का भ्रमविज्ञान और वेदांत का संगम — 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲 प्रस्तावना यह ग्रंथ न किसी मत का अनुसरण है, न किसी विचारधारा का प्रतिवाद। यह विज्ञान और वेदांत के बीच का सेतु है — जहाँ स्थूल की सीमा समाप्त होती है, और सूक्ष्म की अनंतता आरंभ।“९९ का धर्म — १ का भ्रम” एक संकेत है — कि मनुष्य जिस १% स्थूल जगत में जी रहा है, वह उसकी वासना, उसका अहं, उसका भ्रम है। शेष ९९% — चेतना, मौन, आत्मा — वही सच्चा धर्म है।यह ग्रंथ मनुष्य को भीतर देखने की चुनौती देता है। क्योंकि