सपनों का सौदा

--- सपनों का सौदा (लेखक – विजय शर्मा एरी)रात का सन्नाटा पूरे शहर पर छाया हुआ था। घड़ी ने बारह बजाए, और तभी पुराने घड़ीसाज़ की दुकान की खिड़की पर किसी ने धीरे से दस्तक दी।वह दुकान शहर के सबसे पुराने हिस्से में थी — चांदनी चौक की तंग गलियों में छिपी हुई "सपनों का बाजार"।यह कोई साधारण बाजार नहीं था। यहाँ लोग वस्तुएँ नहीं, सपने खरीदते थे।दुकान का मालिक — नसीर अली — सफेद बालों और चांदी सी दाढ़ी वाला रहस्यमयी आदमी था।लोग उसे “सपनों का सौदागर” कहते थे।कहते हैं, उसके पास हर इंसान के खोए हुए सपनों का खजाना