आख़िरी कॉल

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रात के ठीक 11:47 बजे मोबाइल की घंटी बजी।आयुष नींद में था, लेकिन इतनी रात को कॉल देखकर चौंक गया।नंबर अनजान था। उसने झिझकते हुए रिसीव किया —“हेलो?”दूसरी ओर से हल्की, काँपती हुई आवाज़ आई, “हेलो... आयुष?”आवाज़ जानी-पहचानी लगी, पर वह यक़ीन नहीं कर पाया।“कौन बोल रहा है?”“मैं... नेहा बोल रही हूँ।”आयुष का दिल एक पल को थम गया।नेहा... वही लड़की जो तीन साल पहले सड़क हादसे में मर गई थी।वो बुदबुदाया, “ये मज़ाक कौन कर रहा है?”“मज़ाक नहीं, सच्चाई है,” आवाज़ बोली, “किसी पर भरोसा मत करना... वो तुम्हारे घर में ही है।”लाइन कट गई।आयुष की सांसें तेज़ हो