दूसरे दौर में “रात मैं ने देखा मेरे सामने एक शीशा रखा है,” थाली में आधी गाजर कद्दूकस कर चुकने के बाद ही मैं अपना मुंह खोलने की हिम्मत दिखाती हूं, “और शीशे में एक मुंह है जिस के दांत कुछ चबा रहे हैं……” “गाजर का हलवा?” कांति, मेरी सौतेली मां हंस पड़ती है। मेरी गुलामी के क्षण उसे खूब गुदगुदाते हैं। “गाजर तो