कर्म और होश

कर्म और होश — 𝓐𝓰𝔂𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲 प्रस्तावना कर्म मनुष्य का स्वभाव है, पर होश — उसका धर्म। कर्म बिना होश के पाप बन जाता है, होश बिना कर्म के जड़ता। दोनों का मिलन ही जीवन का शुद्धतम संगीत है।यह ग्रंथ किसी उपदेश की तरह नहीं, एक दर्पण की तरह है — जहाँ तुम अपने भीतर के करने वाले को धीरे-धीरे पिघलते देख सको।यहाँ कोई साधना नहीं सिखाई गई, सिर्फ यह स्मरण दिलाया गया है कि जो देख रहा है — वही ब्रह्म है। बाकी सब उसका नृत्य है।  सूत्र कर्म अंधा है — दृष्टि दिव्य है। जहाँ