माँ सावित्री

 *"वो माँ जो हारना नहीं जानती"* शहर के एक कोने में एक पुरानी सी झोपड़ी थी। बाहर से टूटी-फूटी, लेकिन अंदर एक ऐसा दिल धड़कता था जो हर तूफ़ान से लड़ने का हौसला रखता था। उस झोपड़ी में रहती थी *सावित्री*, एक माँ — नायिका नहीं, लेकिन नायकों से कहीं ज़्यादा मज़बूत। ज़िंदगी ने उसे कभी आसान रास्ते नहीं दिए। पति की अचानक मौत ने उसे अकेला कर दिया, और दो छोटे बच्चों की ज़िम्मेदारी उसके काँधों पर आ गिरी। लोग कहते थे, "अब कैसे चलेगा?" लेकिन सावित्री ने आँसू नहीं बहाए — उसने अपने आँचल को कसकर बाँधा और काम की