एपिसोड 4 तन्हाईशरीर और आत्मा का एक होनाशाम ढल चुकी थी बाहर आसमान में काले बादलों की परतें किसी अनकहे तूफ़ान की आहट दे रही थीं बंगले में रखी गयी मीटिंग लंबी खिंच गई थी बिजली बार-बार जा रही थी, और बाहर मूसलाधार बारिश ने सड़कों को जैसे समुंदर में बदल दिया था.संध्या ने खिड़की से बाहर झाँका कारों की कतारें थमी हुई थीं, पानी छत से धार की तरह गिर रहा था। तभी उसने पीछे मुड़कर देखा अमर फ़ाइलें समेट रहा था, उसका चेहरा थकान से भीगा हुआ था।"अमर, इस मौसम में निकलना ठीक नहीं होगा,”संध्या ने धीमी, मगर दृढ़