रोशनी सी औरतें

गाँव के सुनसान छोर पर एक जर्जर मकान खड़ा था , जिसकी दीवारों की दरारों से हवा सीटी बजाती थी और छप्पर से छनकर आती धूप उस घर की कहानी सुनाती थी।वक़्त ने उसे थका दिया था, मगर उसके भीतर रहने वाली दो स्त्रियाँ समय से भी अधिक मज़बूत थीं, सरोज और उसकी बहू रेखा।सरोज,सफेद सूती साड़ी में लिपटी, झुर्रियों से भरा चेहरा, पर आँखों में अब भी उम्मीद की चमक।बरसों पहले उसका पति ग़ुस्से में घर छोड़ गया था। उसको बेसहारा छोड़कर |अकेली औरत का समाज में जीना अनवरत चलने वाला युद्ध है | उसने अपने बेटे को अपना हौसला बनाया