फिर से रिस्टार्ट (भाग 1: टूटा हुआ घर)रात का सन्नाटा था।आसमान में बादल गरज रहे थे, जैसे खुद भगवान भी किसी की तकलीफ़ पर रो रहे हों।एक पुराने, मिट्टी के घर में टिमटिमाता बल्ब लटका था — कभी जलता, कभी बुझता।अंदर से चीखें आ रही थीं।“मत मारो रामू… बच्चे देख रहे हैं!”सीमा ने अपनी हथेली से गाल को ढक लिया, जहाँ उसके पति का थप्पड़ अभी-अभी पड़ा था।लेकिन रामू की आँखों में सिर्फ़ शराब का नशा था — और दिल में ग़ुस्से का लावा।हाथ में सस्ती दारू की बोतल, होंठों पर बदबू, और ज़ुबान पर गालियाँ।रामू (चिल्लाते हुए): “पैसे