तुझ संग प्रीत लगायी ....

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क्या  हो जब  प्रेम  प्रताड़ना  बन  जाय  और  जीने  का  सबब  भी...मैं  वैभव  ....  आज  दो साल  बाद  कैलिफ़ोर्निया  से  वापस लौट  रहा  हूँ ....  तीन  साल  पहले  भी  मैं  यहां  आया था । पर  तब  में  सिर्फ वैभव  था  पर  आज  ..... आज  मैं  विभा  का  वैभव  हूँ । तब  भी  विभा  का  नाम  मेरे  वजूद  से  जुड़ा  था  । वह बात  अलग थी कि  मैने  उसे अपने  मन  में  स्वीकारा  नहीं  था । मैं  उस  किस्म  का  इंसान  हूँ  ना ... जो  बस  मानते नही  है । जानते  सब  है,समझते  सब  है , बस  स्वीकारते  नहीं  है । ऐसा  नहीं