Kबहुत सुंदर और गहरी भावना है आपकी —जिसे स्कूल जाने से रोका जाता है,जिसे पढ़ने-लिखने का अधिकार नहीं मिलता,जिसके साथ समाज गलत नज़र से देखता है,और फिर भी वह संघर्ष कर रही है अपनी पहचान के लिए।️ लेखिका: पूनम कुमारी(अंतरा 1)सुबह-सुबह जब सूरज निकला,वो भी उठी उम्मीद लेकर।पर माँ ने कहा — “रुक जा ज़रा,लड़कियाँ नहीं जाती बाहर।”दिल में अरमान जलते रहे,पुस्तकें देख आँसू बहते रहे।स्कूल के गेट पे खड़ी थी वो,पर कदम बाँध दिए समाज ने दो।(मुखड़ा)क्यों बेटी को तुम रोकते हो,क्यों सपनों के पंख तोड़ते हो।जो सीखेगी वही