अध्याय 4संस्कृति पर उठते प्रश्न और आधुनिक द्वंद्वहर युग में प्रश्न उठते रहे हैं। प्रश्न अपने आप में बुरे नहीं होते, क्योंकि प्रश्न ही सत्य की खोज का आधार हैं। किंतु जब प्रश्न तर्क का स्थान उपहास लेने लगते हैं, और श्रद्धा का स्थान संदेह ले लेता है, तब संस्कृति संकट में पड़ जाती है। आज भारत के शास्त्र, ग्रंथ और परंपराएँ केवल आस्था के प्रतीक मात्र नहीं मानी जातीं, बल्कि उन पर आरोप लगाया जाता है कि ये तो केवल कल्पनाएँ हैं और इनका आधुनिक युग में कोई महत्व नहीं। यही आधुनिक द्वंद्व है—परंपरा बनाम प्रगति।भारतीय शास्त्र सदैव मानवता