बरगद और वो

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शीर्षक: बरगद और वोलेखक: विजय शर्मा एरी---गांव के किनारे, जहाँ मिट्टी की खुशबू हवा में घुल जाती थी और नदिया का पानी सूरज की किरणों से सोने सा चमकता था, वहीं एक विशाल बरगद का पेड़ खड़ा था — मानो समय का साक्षी। उसकी जड़ें ज़मीन से बाहर निकल कर धरती को गले लगातीं, और उसकी छाँव में बैठा कोई भी इंसान अपने दुख भूल जाया करता।गांव के लोग उसे “बाबा बरगद” कहते थे। कहते हैं, उस पेड़ के नीचे बैठने से मन को शांति मिलती है, और जो सच्चे मन से अपनी बात कहे, उसकी मुराद पूरी होती है।वहीं,