" जब सरलता ईश्वर थी " १. प्रारंभ — जब मनुष्य के पास विज्ञान नहीं था एक समय था जब मनुष्य के पास विज्ञान नहीं था,पर उसके भीतर एक स्वाभाविक विज्ञान था —धर्म उसके जीवन का हिस्सा था, पर वाद नहीं।वह आकाश को देखता और झुक जाता,धरती को छूता और कृतज्ञ होता।वह जानता नहीं था, पर महसूस करता था। तब कोई “धनवान” या “गरीब” सच में अलग नहीं थे —फर्क बर्तन का था, भोजन का नहीं।सबका चूल्हा एक ही तरह जलता था,और जलने की गर्मी सबके चेहरों पर समान चमक देती थी। मनुष्य के पास न स्वप्न थे, न कल्पनाएँ।वह भविष्य में नहीं, वर्तमान