अंतर्निहित - 14

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[14]सूरज अब अस्त हो चुका था। पश्चिम आकाश अपना रंग बदल रहा था। शैल भी अपना रंग बदल रहा था। वत्सर ने आँखें खोली तो शैल ने अपने मूल लक्ष्य की दिशा में बातें प्रारंभ की । “जब कोई सर्जक किसी रचना का सर्जन करता है तो केवल दो ही संभावनाएं होती हैं, श्रीमान सर्जक।”शैल ने कहा। “हो सकती है।” उसने कहा। “वह तो मैं कह रहा हूँ। आप अपना कुछ कहोगे?”“मैं आपके मत से सम्मत हूँ, मुझे बस यही कहना है।”“बिना जाने इन दो संभावनाओं के विषय में आप सहमत हो गए श्रीमान सर्जक?”उसने कोई प्रतिभाव नहीं दिया। “बड़ी शीघ्रता है आपको मेरी बातों