संभोग से समाधि - 8

  • 153

अध्याय २ : ऊर्जा का रूपांतरण — अग्नि से ज्योति तक — 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲 भूमिका / प्रस्तावना यह ग्रंथ किसी धार्मिक या नैतिक दृष्टि से नहीं लिखा गया।यह एक सीधी दृष्टि है — उस ऊर्जा पर जो हर मनुष्य के भीतर बह रही है।वही ऊर्जा जिसे समाज ने काम कहा,धर्म ने पाप कहा,और तंत्र ने द्वार कहा।यह ग्रंथ उसी द्वार से भीतर जाने की साधना है —जहाँ देह ध्यान में बदलती है,रस मौन में,और प्रेम समाधि में।संभोग यहाँ किसी शरीर की घटना नहीं,बल्कि चेतना की यात्रा है।यहाँ आनंद भोग नहीं, बोध बनता है।ऊर्जा वही रहती है —