उजाले की ओर –संस्मरण

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================= स्नेहिल नमस्कार मित्रो     हर बार की भाँति इस बार भी दीपावली आ गई, सभीअपनी अपनी जेब के अनुसार त्योहार का स्वागत करने की तैयारी में मशगूल हैं।      कभी सोचते हैं कि क्या दीपों के इस जगमगाते त्योहार पर जहाँ हर दिन मँहगाई द्रौपदी के चीर सी बढ गई है, जहाँ मध्यम वर्गीय मनुष्य किसी तरह कतर ब्योंत करके अपने परिवार व बच्चों के चेहरों पर रोशनी लाने का प्रयास करता है, जहाँ बूढी आँखों के सपने सूखने लगते हैं, होठों पर ताले लग जाते हैं, वे अशक्य हो जाते हैं और तीसरी पीढी के सपनों