चाँद का दूसरा रूप

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ठीक है ---चांद का दूसरा रूप ️ विजय शर्मा एरीरात का सन्नाटा था। आँगन में बैठी नन्हीं परी—आन्या—आसमान की ओर देख रही थी। उसकी आँखों में चमक थी और होंठों पर मासूम सवाल।“माँ, सबके पास खिलौने, किताबें, रंग-बिरंगी गुड़िया हैं... पर मेरा अपना क्या है? क्या मेरा भी कोई है, जो सिर्फ मेरा हो?”उसकी माँ मुस्कुरा दी। उसने बेटी को गोद में लेकर कहा,“तुम्हारा अपना चाँद है, आन्या। देखो, वह हर रात तुम्हें देखने आता है। कभी पूरा, कभी आधा, लेकिन हमेशा तुम्हारे साथ।”आन्या की आँखें और फैल गईं। वह सचमुच सोचने लगी कि आसमान का चाँद सिर्फ उसी का है।